मोक्षदा एकादशी

 


 मोक्षदा एकादशी


 मोक्षदा एकादशी

मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी के व्रत को विशेष रूप से मोक्ष प्रदायक माना गया है।  महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण ने  अर्जुन को गीता का उपदेश इस तिथि को ही दिया था।  यही कारण है कि मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती भी मनाई जाती है।  आज भगवान कृष्ण के दामोदर रूप कि पूजा कि जाती है।  इस व्रत का विधान भी उत्पन्ना एकादशी के समान ही है।









उत्पन्ना एकादशी का सम्पूर्ण वृतान्त सुनने के पश्चात धर्मराज युधिष्ठर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा - हे मधुसूदन आप तीनो लोको के स्वामी सब को सुख देने वाले और जगत के पति है।  मै आपको नमस्कार करता हूँ।  हे देवी आप सब के हितैषी है इसलिये मेरे इस संशय को दूर कीजिये कि मार्गशीर्ष  शुक्ला एकादशी का नाम क्या है , उस दिन कौन - से देवता की पूजा की जाती है और उसकी विधि क्या है।  भगवान आप मेरे इन प्रश्नों का विस्तारपूर्वक उत्तर देने की कृपा कीजिए।  भगवान श्रीकृष्ण ने उतर दिया - हे धर्मराज तुम ने बड़ा उत्तम प्रश्न पूछा है।  इससे आपका यश संसार मैं फैलेगा , सो आप ध्यानपूर्वक सुनिय   मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है।  इसका नाम मोक्षदा एकादशी है।  इस दिन दामोदार भगवान की धुप , दीप , नैवैध आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।  अब मै एक अति प्राचीन कथा सुनता हूँ कि किस प्रकार।  इस एकादशी का व्रत करने से नरक गये हुए माता - पिता ,पुत्रादि को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है।

गोकुल नामक नगर मै वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था।  उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञात ब्रह्मण रहते थे।  वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था।  रक समय रात्रि को स्वप्न देखकर राजा को बड़ा दुःख एवं आश्चर्य हुआ और प्रातः काल होते ही विद्धान बाह्मणों से अपने स्वप्न की बात कही।  राजा ने कहा - हे ब्राह्मणो रात्रि को स्वप्न में मेने अपने पिता को नर्क में पड़ा देखा है और उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र में नर्क भोग रहा हूँ मेरी यहाँ से मुक्ति करो।  आप लोग मुझे कोई ऐसा तप , दान , व्रत आदि उपाय बताइये जिससे मेरे पिता कि मुक्ति हो जाए।  उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता - पिता का उद्धार कर सके।  एक उत्तम पुत्र जो अपने माता -पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है।

राजा के ऐसे वचन सुनकर ब्राह्मण कहने लगे - हे राजन यहाँ समीप ही भूत - भविष्य - वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है।  आपके प्रश्नो का उत्तर वे भलीभाँति दे सकते है।  ऐसा सुनकर राजा पर्वत मुनि के आश्रम में गया।  उस आश्रम में अनेकों शान्तचित योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे।  उसी जगह चारों वेदों के ज्ञाता साक्षात्  ब्रहा के समान पर्वत मुनि बैठे थे।  राजा ने वहाँ जाकर उनको साष्टांग प्रणाम किया।  पर्वत मुनि ने राजा से उसके आने का प्रयोजन पूछा।  राजा ने कहा -हे महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है परन्तु अकस्मात एक विद्धान गया है , जिससे मेरे ह्रदय में अत्यंत अशांति हो रही है।

यह सुनकर पर्वत मुनि ने एक क्षण के लिए आंखे बंद कि और भूत एवं भविष्य के बारे में विचारने लगे।  फिर बोले - हे राजन मैंने अपने योगबल से तुम्हारे पिता के सब कुकर्मो को जान लिया है।  उन्होंने पूर्व जन्म में सौत के कहने पर अपनी दूसरी कामातुर पत्नी को ऋतु दान मांगने पर भी नहीं दिया था।  उसी पाप के फल से तुम्हारे पिता को नर्क भोगना पड़ रहा है।  तब राजा बोले - हे महात्मन मेरे पिता के उद्धार के निमित कोई उपाय बताइये।  पर्वत मुनि बोले -हे राजन मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को उपवास करके उसके पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर देना।  उस एकादशी के पुण्य के प्रभाव से अवश्य ही आपके पिता की मुक्ति होगी।  मुनि के वचनों को सुनकर राजा अपने महल में वापस गया और कुटुम्ब सहित इस मोक्षदा एकादशी का व्रत किया।  फिर उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को अर्पण कर दिया।  उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को नर्क से मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग को चले गए।मार्गशीष मास के शुक्लपक्ष की इस मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले के समस्त पाप नष्ट हो जाते है और अंत मे उसको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।  इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला अन्य कोई व्रत नहीं है।  इस कथा को पढ़ने तथा सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।  यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सभी चिंतायें दूर करने वाला है।  इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण में हो गाय।  

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